जग्गनाथपुरी रथ यात्रा

जगन्नाथपुरी रथ यात्रा, भारत के पूर्वी भाग में स्थित ओड़ीशा राज्य के जगन्नाथपुरी नगर में हर साल आयोजित होने वाला एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक उत्सव है। यह यात्रा देवजगन्नाथ (भगवान जगन्नाथ), उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा के मूर्तियों को मंदिर से उनके अन्य आवासीय मंदिरों में ले जाने का उत्सव है।

यह यात्रा भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष को आयोजित होती है, जो जुलाई और अगस्त के बीच में पड़ता है। यह यात्रा दुनिया भर के भक्तों को आकर्षित करती है और लाखों लोग इस उत्सव को देखने और भाग लेने के लिए जगन्नाथपुरी में आते हैं।

यात्रा की शुरुआत रथ या रथेश्वर मंदिर से होती है, जहां से भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की विशाल रथों (वाहनों) को निकाला जाता है। इन रथों को जगन्नाथ मंदिर से गंगा मंदिर, मौसी मा मंदिर और बहुरी मा मंदिर ले जाया जाता है। इस यात्रा में रथों को लाखों भक्तों द्वारा धक्के-मुक्के करके आगे बढ़ाया जाता है। इसे देखने आने वाले लोग भगवान की खुशी के लिए रथ को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं।

रथ यात्रा का मुख्य दिन “बहुबिज” होता है, जिसे यात्रा के दसवें दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रथों को उनके मंदिरों में वापस ले जाया जाता है और वहां पूजा-अर्चना की जाती है। यह दिन भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।

जगन्नाथपुरी रथ यात्रा का उद्देश्य है भगवान जगन्नाथ के धार्मिक और सामाजिक महत्व को दर्शाना, लोगों को साथ में मिलकर खुशहाली और शांति का आनंद उठाना और भगवान के दरबार में श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करना। यह उत्सव ओड़िशा राज्य की संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है और हर साल बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

रथ यात्रा की शुरुआत

रथ यात्रा की शुरुआत पूर्व समय से ही होती आई है और इसका इतिहास महाभारत काल तक जाता है। यह यात्रा प्राचीनतम धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में से एक मानी जाती है।

रथ यात्रा की शुरुआत उस दिन होती है जब जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा के लिए तैयारी की जाती है। इस दिन को “स्नान पूर्णिमा” या “देव स्नान” के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को भगवान के निज मन्दिर में अद्यापि अद्य स्नान कराया जाता है। इसके बाद मूर्तियों को नए वस्त्रों से सजाया जाता है, जिसे “स्नान यात्रा” कहा जाता है।

स्नान पूर्णिमा के दौरान, जगन्नाथपुरी मंदिर के पास एक सार्वजनिक सभा आयोजित की जाती है और भगवान की यात्रा की घोषणा की जाती है। इसके बाद से ही रथ यात्रा शुरू होती है।

इसके बाद, रथ यात्रा के लिए तैयार किए गए रथों को जगन्नाथ मंदिर से निकाला जाता है और रथों को रथ यात्रा में उपयोग के लिए यात्रा के मार्ग पर स्थापित किया जाता है। रथों को रंगीन बांधे जाते हैं और उन्हें भगवान के आदर्शों से ढ़क दिया जाता है। इसके बाद भक्त और श्रद्धालु रथों को धक्के-मुक्के करके आगे बढ़ाते हैं और यात्रा का आगमन करवाते हैं।

रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ उठाकर उनके आवासीय मंदिरों, जैसे गंगा मंदिर, मौसी मा मंदिर और बहुरी मा मंदिर, को ले जाया जाता है। यह यात्रा धर्मिक महापर्व है और भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है।

रथ यात्रा का धार्मिक महत्त्व

रथ यात्रा का धार्मिक महत्त्व विभिन्न आयामों से मिलकर बनता है। यह यात्रा हिन्दू धर्म के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। कुछ मुख्य धार्मिक महत्वपूर्ण पहलुओं को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:

भगवान की यात्रा: रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, बालभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों को उनके निवास स्थान से दूसरे मंदिरों में ले जाने का उत्सव है। यह यात्रा भगवान के भक्तों को उनके आवासीय मंदिर में प्रवेश करवाने और उनके दर्शन करवाने का माध्यम है।

भक्ति और सेवा का उदाहरण: यात्रा में भाग लेने वाले भक्त और श्रद्धालु भगवान की सेवा करने का एक अद्वितीय अवसर प्राप्त करते हैं। वे रथ को एक साथ खींच करके नगर भ्रमण करवाते हैं और भगवान के लिए अपनी प्रेम और भक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

सांस्कृतिक एकता: रथ यात्रा एक ऐसा उत्सव है जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रदर्शन होता है। लोग इस अवसर पर साथ आते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, प्रसाद बांटते हैं और आपस में भाईचारे का अनुभव करते हैं। यह उत्सव समाज को सम्पर्क, संवाद, और साझा भावनाओं का माध्यम बनाता है।

धार्मिक पुण्य की प्राप्ति: रथ यात्रा में भाग लेने से लोग धार्मिक पुण्य की प्राप्ति मान्यता हैं। यह यात्रा धर्मिकता, साधना, और आध्यात्मिकता के माध्यम से भक्तों को शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करती है।

इस प्रकार, रथ यात्रा भगवान के दरबार में श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को बढ़ाता है, और भक्तों को धार्मिक आदर्शों का अनुसरण करने का अवसर प्रदान करता है।

पर्यटन

यहाँ की मूर्ति, स्थापत्य कला और समुद्र का मनमोहक किनारा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए काफी है। कोणार्क का अद्भुत सूर्य मन्दिर, भगवान बुद्ध की अनुपम मूर्तियों से सजा धौल-गिरि और उदय-गिरि की गुफाएँ, खंड-गिरि की गुफाएँ,जैन मुनियों की तपोभूमि, लिंग-राज, साक्षी गोपाल और भगवान जगन्नाथ के मन्दिर देखने लायक है। पुरी और चन्द्रभागा का मनमोहनीय समुद्री तट, जनकपुर चन्दन तालाब, और नन्दनकानन अभ्यारण् बड़ा ही मनमोहनीय और देखने लायक है। शास्त्रों और पुराणों में भी रथ-यात्रा की महत्वता को माना गया है।

स्कन्द पुराण में कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का भजन-कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है। जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के मिट्टी-कीचड़ आदि में लेट-लेट कर यात्रा करते हैं वे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को सिधार जाते हैं। जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं उन्हें मोक्ष को प्राप्ती होती हैं। रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच पधारते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं। सब सब मनुष्य मेरी प्रजा है। ये उनके उद्गार है। भगवान जगन्नाथ तो पुरुषोत्तम हैं। श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महायान का शून्य और अद्वैत का ब्रह्म उनमे समाहित है। उनके अनेक नाम है, वे पतित पावन हैं।